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मेरी प्यारी मरियम

  • Writer: Mayan Kansal
    Mayan Kansal
  • Nov 14, 2016
  • 1 min read

मेरी प्यारी मरियम,


आज सूरज की किरणों के साथ फिर तुम्हारी याद आ गई। कुछ सुबह के जैसा ही मिज़ाज़ है तुम्हारी यादो का। धुप निकले या न निकले, सुबह तो होती है। कुछ यूँ ही तुम्हारी यादें जिददी हैं, की बस आ जाती हैं। अरे भाई ज़रा मौसम के इशारो को तो जांच लो। हो सकता है आज धूप तेज़ निकले, और कुछ बारिश का सा, कुछ सर्द सा वातावरण न रहे, और यादो में खोने का दिल न हो। पर नहीं। मानो मेरी साँसें तुम्हारी ज़िक्र की मोहताज़ हों। खेर ये छोरो। पता है हम इतना लड़ते थे फिर भी याद सिर्फ हस्ता हुआ चेहरा आता है तुम्हारा। और मेरा खुद का भी। मतलब हाँ माना की मैं ज़्यादा खुल कर हस्ता था, पर कहते हैं ना, कितने ही झूठ के साये में दबी हों, मुस्काने झूठी नहीं होती। अच्छा सुना है वहां ढंड ही पड़ती है बाराह महीने? यहाँ तो सर्दी का बेसब्री से इंतज़ार है। तुम अपना ख्याल रखना। और हाँ ये दसवा लैटर लिख रहा हूँ, जबसे तुम्हारी सियाचिन पोस्टिंग हुई है। पोस्ट ऑफिस वालो ने बताया है की सुविधा उम्दा कर दी गयी हैं। आशा करता हूँ इस बार लैटर तुम तक पहुँच जाएगा। फिर भी लिखता रहूँगा। जब जब बर्फीले तूफ़ान के बीच गर्माहट का ज़र्रा नसीब हो, उससे मेरे अल्फाज़ो का निवाला समझ कर अपने ज़हन में उतार ती रहना। और मैं लिखता रहूँगा।


तुम्हारा, हाशिम


©मयन, November 14, 2016

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