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बेनाम ख्वाहिशें

  • Writer: Mayan Kansal
    Mayan Kansal
  • Jun 19, 2014
  • 1 min read
रोते बच्चे की वो चाह, ढलते बुढ़ापे की इच्छा, सरहद पर तन्हाई, वो बेमतलब की लडाई,


उस बच्चे को मनाना है, वृद्ध के जीवन को सुलझाना है, देश में अमन को बढ़ाना है, जिन्दगी में कुछ तो कर जाना है !

क्रांति के जर्रे को फिर से सुलगाना है, इंसाफ की लडाई में हाथ बटाना है, जीना है, जी जी कर फिर मरना है, बदलाव के इस मंजर को कहीं दूर पहूँचाना है, इस दुनिया में जाने से पहले, कुछ तो बदल जाना है !

मासूमों की चीख, और मन्नतों भरी भीख, जीवन का हर रंग, मेरे ख्वाबों की पतंग, जीने का वो ढंग, कुछ कर जाने की उमंग, हर जर्रे को सही मुकाम तक पहुचाना है |

अरे ‘कुछ’ करना तो बस बहाना है, बदल कर तो बहुत कुछ जाना है !!

©मयन, June 19, 2014

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