न जाने क्यूं !
- Mayan Kansal
- Oct 26, 2014
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न जाने क्यूं, कभी कभी ऐसा लगता है जेसे अभी बहुत कुछ पाना बाकी है, जेसे कहीं जा रहे हैं और कहीं पहुचना बाकी है | ना जाने क्यूं एक बेचेनी सी है रूह में की उड़ना तो सीखा, मगर वो उड़ान बाकी है | जीना भी सीख ही लिया , मगर जीना तो अभी बाकी है |
जी चाहता है पूँछ लूं इस लम्हे से तू चाहता क्या है? ले जाना है कहीं, तो ले जाता क्यूं नही? दिखाना है कुछ, तो दिखाता क्यूं नही? इतना कुछ तो है, फिर कमी किस की है? इतने लोग हैं यहाँ, फिर भी तन्हाई ही क्यूं सगी है?
फिर आते हैं ख्याल कुछ ऐसे भी, ना जाने क्यूं की पा भी लिया सब कुछ, पर ऐसा पाऊंगा ही क्या? पहुंच भी गया वहां, तो भी पहुंचुंगा ही कहाँ? जब इस अनजानी सी ज़िंदगानी मे अपने आप तक को ना पेहचान सका!
©मयन, October 26, 2014
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