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कवि नही, कविता हूं मैं!

  • Writer: Mayan Kansal
    Mayan Kansal
  • Oct 28, 2014
  • 1 min read

Updated: Oct 14, 2021

जिसे पढ़ा नही, कभी लिखा नही, जो कथित नही , कहीं गठित नही, कागज पर उतरने की चाह में जो, शुरू हूई, पर खतम नही, वो कविता हुं मैं!

नाव नही, पतवार नही, बेहते पानी की धार नही, पानी में गिरता वो अक्ष नही, जो झुके कभी ना, वो व्रक्ष नही, उस पार खड़ा केदार नही, पानी में दिखता जो दूर कहीं, टूटे तारे का वो प्रतिबिम्ब हुं मैं!

आईने में दिखती शक्ल नही, हमदर्द नही, बे-ज़ख़्म नही , जो समझा तुमने, वो कभी था ही नही, जो सोचा तुमने, वो कभी हुआ ही नही, जो पढ़ा कभी, वो तो हिस्सा था, अधूरी कविता का एक किस्सा था , ए-दिल-ए नादान, मैं कवि नही, मैं तो कविता हुं !

©मयन, October 28, 2014

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